मेरे रोम-रोम में बसा प्रेम, उससे ही बनी मेरी हला, मैं हूँ रंगा खुद प्रेम में, और दिव्य प्रेम मेरा प्याला। प्रेम में जो भी रंगा, वह प्रेम ही हो गया, प्रेम का संदेश अद्भुत, लाई मेरी मधुशाला।
अर्थात..........
"मेरे रोम-रोम में बसा हुआ प्रेम, वह अनमोल रत्न है जिससे मेरी जीवन-शैली रौशनी से भर जाती है। मैं स्वयं प्रेम में रंग बढ़ाता हूँ, और यह प्रेम ही मेरे जीवन का अद्वितीय प्याला है। प्रेम में जो भी रंग है, वह सब प्रेम ही बन जाता है, और यह प्रेम का संदेश हमारे जीवन को सुंदरता और आनंद से भर देता है, जैसे मधुशाला अपने अद्वितीय महक से हमें मोहित करती है।"